mishra

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23). किसी सुबह को शाम बना दो

23). विषय-: किसी सुबह को शाम बना दो 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 नारी हूँ... दर्द की मारी हूँ...

प्रातःउठती हूँ... रात्रि तक चलती हूँ....

अपना कुछ न करती हूँ... फिर भी व्यस्त रहती हूँ...

तमाम बातें सुनती हूँ... फिर भी मुस्कराती हूँ...

अक्सर सोचती हूँ... काश!कोई सुबह शाम...

बन जाए तो... चैन की नींद सो जाऊँ...


अधूरे मिसरे/प्रसिद्ध पंक्तियां आभा मिश्रा-कोटा राजस्थान (स्वरचित एवं मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित©®)

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